Motivation Hindi Shayri |
यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है
उम्मीद ओ यास की रुत आती जाती रहती है
मगर यक़ीन का मौसम नहीं बदलता है
-मंज़ूर हाशमी
(यास = नाउम्मीदी, निराशा)
मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ
तुम मुझ से पूछते हो मिरा हौसला है क्या
-अदा जाफ़री
(सबा = बयार, पुरवाई, हवा)
Motivational Hindi Shayri
हर रोज गिरकर भी, मुक्कमल खड़े हैं
ए ज़िन्दगी देख, मेरे हौसले तुझसे भी बड़े हैं
-शायर: नामालूम
ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा- Hindi Motivational shayri
ख़ुद-ब-ख़ुद हमवार हर इक रास्ता हो जाएगा
मुश्किलों के रूबरू जब हौसला हो जाएगा
वो किसी के आसरे की आस क्यों रक्खे भला
जिसका रिश्ता है जड़ों से खुद हरा हो जाएगा
प्यार की दुनिया से नाता जोड़कर देखो कभी
जिसको छू दोगे वो पत्थर आईना हो जाएगा
सीख ले ऐ दोस्त अपने आप से यारी का फ़न
वरना तेरा ज़िन्दगी से फ़ासला हो जाएगा
ऊंचे-ऊंचे सर भी उस दिन शर्म से झुक जाएंगे
जब भी उनका आईने से सामना हो जाएगा
बख़्श दे यारब मुझे भी कोई मीठी सी कसक
मेरे जीने का भी कोई आसरा हो जाएगा
तुम हवाएं ले के आओ मैं जलाता हूं चिराग़
किसमें कितना दम यारों फ़ैसला हो जाएगा
-हस्तीमल ‘हस्ती’
बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला
बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला
नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला
(गुरेज़-पा = छलने वाला, कपटपूर्ण, गोलमाल)
न जाने किस की हमें उम्र भर तलाश रही
जिसे क़रीब से देखा वो दूसरा निकला
हमें तो रास न आई किसी की महफ़िल भी
कोई ख़ुदा कोई हम-साया-ए-ख़ुदा निकला
हज़ार तरह की मय पी हज़ार तरह के ज़हर
न प्यास ही बुझी अपनी न हौसला निकला
हमारे पास से गुज़री थी एक परछाईं
पुकारा हम ने तो सदियों का फ़ासला निकला
अब अपने-आप को ढूँडें कहाँ कहाँ जा कर
अदम से ता-ब-अदम अपना नक़्श-ए-पा निकला
(अदम = परलोक, शून्य, अस्तित्व हीनता), (ता-ब-अदम = अनंत काल), (नक़्श-ए-पा = पैरों के निशान, पदचिन्ह)
-ख़लील-उर-रहमान आज़मी
जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी
आए हैं उस की सम्त से पत्थर कभी कभी
(सम्त = तरफ़, दिशा, ओर)
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी
याँ तिश्ना-कामियाँ तो मुक़द्दर हैं ज़ीस्त में
मिलती है हौसले के बराबर कभी कभी
(तिश्ना-कामियाँ = प्यास, दुर्भाग्य, बदक़िस्मती), (ज़ीस्त = जीवन)
आती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
(शुऊर = समझ, सलीका, चेतना)
मंज़िल की जुस्तुजू में जिसे छोड़ आए थे
आता है याद क्यूँ वही मंज़र कभी कभी
(जुस्तुजू = खोज, तलाश)
माना ये ज़िंदगी है फ़रेबों का सिलसिला
देखो किसी फ़रेब के जौहर कभी कभी
(जौहर = गुण, दक्षता)
यूँ तो नशात-ए-कार की सरशारियाँ मिलीं
अंजाम-ए-कार का भी रहा डर कभी कभी
(नशात-ए-कार = उन्मादपूर्ण, मग्न करने वाला, चित्ताकर्षक, अति आनंदित), (सरशारियाँ = परमानन्द)
दिल की जो बात थी वो रही दिल में ऐ ‘सुरूर’
खोले हैं गरचे शौक़ के दफ़्तर कभी कभी
-आल-ए-अहमद सूरूर
Tehzeeb hafi shayari