याद शायरी |
माना के तिरा फ़ैज़ अभी, आम नहीं है
क्या “क़ैस” की ख़ातिर भी, कोई जाम नहीं है ?
(फ़ैज़ = लाभ, उपकार, कृपा)
मेरी ये शिकायत के मुझे, टाल रहे हैं,
उनका ये बहाना के अभी, शाम नहीं है !
दिन भर तिरी यादें हैं तो, शब भर तिरे सपने,
दीवाने को अब और कोई, काम नहीं है !
वो दिल ही नहीं जिस में तिरी, याद नहीं है
वो लब ही नहीं जिस पे तिरा, नाम नहीं है !
अपनों से शिकायत है ना, ग़ैरों से गिला है,
तक़दीर ही ऐसी है कि, आराम नहीं है !
ये “क़ैस”-ए-बला-नोश भी, क्या चीज़ है, यारों
बद-क़ौल है, बद-फ़ेल है, बद-नाम नहीं है !
(“क़ैस”-ए-बला-नोश = शराबी “क़ैस”), (बद-क़ौल = बुरा बोलने वाला), (बद-फ़ेल = बुरे काम करने वाला)
~ राजकुमार “क़ैस”
मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना
कहीं से तुम बयाँ करते कहीं से हम बयाँ करते –
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना
दीवार-ए-तकल्लुफ़ है तो, मिस्मार करो ना
गर उस से मोहब्बत है तो, इज़हार करो ना !
(दीवार-ए-तकल्लुफ़ = औपचारिकता की दीवार), (मिस्मार = तोड़ना)
मुमकिन है तुम्हारे लिए, हो जाऊँ मैं आसाँ
तुम ख़ुद को मिरे वास्ते, दुश्वार करो ना !
(दुश्वार = मुश्किल)
गर याद करोगे तो, चला आऊँगा इक दिन
तुम दिल की गुज़रगाह को, हमवार करो ना !
(गुज़रगाह = रास्ता, सड़क), (हमवार = समतल)
कहना है अगर कुछ तो,
पस-ओ-पेश करो मत
खुल के कभी जज़्बात का,
इज़हार करो ना !
(पस-ओ-पेश = संकोच, हिचकिचाहट)
हर रिश्ता-ए-जाँ तोड़ के, आया हूँ यहाँ तक
तुम भी मिरी ख़ातिर कोई, ईसार करो ना !
(रिश्ता-ए-जाँ = जीवन का रिश्ता), (ईसार = त्याग करना)
“एजाज़” तुम्हारे लिए, साहिल पे खड़ा हूँ
दरिया-ए-वफ़ा मेरे लिए, पार करो ना !
(साहिल=किनारा)
-एजाज़ असद
जीवन चक्र
स्नेह मिला जो आपका, हुआ मैं भाव विभोर
,खुशियाँ कत्थक नाचतीं मेरे चारों ओर ।
स्मृतियों में आबद्ध हैं चित्र वो शेष,
विशेष,एक नजर में घूँम लें, ‘पूरन’ भारत देश ।
खेलें, खायें प्रेम से मिलजुल सबके संग,
जीवन का परखा हुआ यही है सुंदर ढंग ।
वक़्त फिसलता ही रहा ज्यों मुट्ठी में रेत,
समय बिता कर आ गए वापस अपने खेत ।
भवसागर हम खे रहे अपनी अपनी नाव
,ना जाने किस नाव पर लगे भँवर का दाँव !
किसको,कितना खेलना सब कुछ विधि के हाथ,
खेल खतम और चल दिये लेकर स्मृतियाँ साथ !
-पूरन भट्ट